छोटे मिलो की कहानी शुरू होती है एक सुनहरी दोपहर में, जब वह बगीचे की धूप में बैठकर अपनी बहन के बादलों से सजाए गए विशाल जूतों को प्रेम से देख रहा था। उसने उन जूतों को अपने पैरों में पहना और थोड़ी-सी छलांग लगाने की कोशिश की—पर जूते हवा में उड़ गए और वह पीठ के बल गिर पड़ा। गिरकर भी मिलो हँस पड़ा, क्योंकि उसे यकीन था कि एक दिन वह इन जूतों के साथ असली उड़ान भरेगा।
उसी वक्त उसकी मम्मी किचन से निकलीं, हाथ में केला और नन्हे रोलर-स्केट्स लेकर। उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहा, “सुपरमैन को भी तो ट्रेनिंग व्हील्स चाहिए थे!” मिलो की आँखों में चमक लौट आई। उसने स्केट्स पहने और ड्राइववे पर दौड़ना शुरू किया। एक-एक कदम पर वह लड़खड़ाता, हेज़ में फँस जाता, पत्तों में उलझकर निकलता—और हर बार हँसी रोक नहीं पाता।
धीरे-धीरे खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई। बच्चे मोबाइल लेकर खड़े हो गए—कोई “ओह, ये देखो!” चिल्ला रहा था, तो कोई विनम्रता से हँसकर थम्ब्स-अप दे रहा था। मिलो ने एक बार फिर वीरता दिखाई, पूरे जोश से दौड़ा, छलांग लगाई… लेकिन जूतों की सिलाई फट गई और रुई उड़कर चारों ओर बिखर गई। वह कार के बम्पर से टकराया, फिर भी उसकी हँसी रोकने वाला कोई नहीं था।
जब शाम की रंगीन लाइटें जलीं, मिलो ने जूते उतारकर अपने हाथों में पकड़े, कलाई पर सुपरहीरो रिबन बाँधा और आखिरी छलांग के लिए दौड़ लगाई। सबकी निगाहें रुकीं—उसकी उछलती हवा में टंगी रही, और फटे जूतों के टुकड़े नेट से होकर गुज़रते ही तालियों की गड़गड़ाहट गली में गूँज उठी।
मिलो ने फिर सीखा कि ज़रूरी नहीं कि सबकुछ परफेक्ट हो—बस बड़ा सपना हो, जो आपको उड़ान भरने की हिम्मत दे।